THERMODYNAMICS CHAPTER-1 (ऊष्मागतिकी अध्याय 1)

1.1 Thermodynamics ऊष्मागतिकी

ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा होती है। ठोस, द्रव तथा गैस तीनों ही अवस्था में पदार्थ के अणु सदैव कम (ठोस) या अधिक (गैस) मात्रा में गतिशील बने रहते हैं व आपस में टकराते रहते हैं। अणुओं के आपस मे टकराने के कारण किसी वस्तु या पदार्थ में ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक, विद्युत या प्रकाश आदि ऊर्जाओं में परिवर्तित किया जा सकता है। इसी क्रम में इन ऊर्जाओं को भी ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। ऊष्मा के इन्ही गुणों व व्यवहारों का अध्ययन जिस विषय मे अंतर्गत किया जाता है उसे "ऊष्मागतिकी" कहते हैं।

     अतः विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत हम ऊष्मा, कार्य व निकाय आदि के गुणों व व्यवहारों का अध्ययन करते हैं, ऊष्मागतिकी कहलाता है।

ऊष्मागतिकी के नियमों का अध्ययन भाप इंजनों, बॉयलरों, अन्तर्दहन इंजनों, टर्बाइनों तथा रेफ्रीजिरेशन आदि में किया जाता है।
Steam Engine



1.2 Thermodynamics System उऊष्मागतिकी निकाय

किसी पदार्थ की उस मात्रा या भाग को जिसकी संहति, ऊर्जा तथा ऊष्मा आदि पर अध्ययन किया जाता है निकाय कहलाता है।

1.3 Types of Thermodynamics System ऊष्मागतिकी निकाय के प्रकार

ऊष्मगतिकी निकाय तीन प्रकार का होता है।

 1- Closed System बन्द निकाय

 इस निकाय में ऊष्मगतिकी प्रक्रम के पहले या बाद में दोनों ही अवस्था मे निकाय की संहति सदैव स्थिर रहती है जबकि उसकी ऊष्मा तथा ऊर्जा निकाय की सीमा पार कर सकते हैं।

 2- Open System खुला निकाय

 इसमें संहति, ऊष्मा तथा ऊर्जा तीनों ही निकाय की सीमा पार कर सकते हैं।

 3- Isolated System विभिन्न या विलगीत निकाय

 इस निकाय में ऊष्मगतिकी प्रक्रम के दौरान संहति, ऊष्मा तथा ऊर्जा तीनों ही निकाय की सीमा पार नही कर सकते।


1.4 Working Body क्रियाकारी वस्तु

ऊष्मतिकी में गैस तथा वाष्प को क्रियाकारी वस्तु के रूप में प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये आवश्यकतानुसार अपने गुणों में जरूरी परिवर्तन की क्षमता रखते हैं। 
ठोसों तथा द्रवों में नगण्य आयतन परिवर्तन होता है जिस कारण ये ऊष्मगतिकी में working body के रूप में प्रयुक्त नही किये जाते।




1.5 Thermodynamics Work ऊष्मागतिकी कार्य

किसी गैस या भाप द्वारा किया गया कार्य, गैस या भाप के दाब तथा गैस या भाप के आयतन के गुणनफल के बराबर होता है। जिसे निम्न प्रकार सिद्ध किया जा सकता है।

          कार्य= बल×विस्थापन
या,      W= F × d
या,      W= (P × A) × d ,      (Fबल= Pदाब×Aक्षेत्रफल)
या,      W= P × V ,               (A क्षे.×d विस्था.=Vआय.)

अतः    गैस द्वारा किया Wकार्य = Pगैस का दाब × V गैस का आयतन


कार्य का मात्रक SI प्रणाली में जूल या किलो-जूल होता है। जूल को न्यूटन-मीटर भी कहा जाता है। एक किलो जूल को स्थीन भी कहा जाता है।

               1 Sthene = 1000 Joule



1.6 Law of Thermodynamics ऊष्मागतिकी के नियम

जिन नियमों के आधार पर गैस या भाप अपनी अवस्था या गुणों में परिवर्तन करता है उसे ऊष्मागतिकी के नियम कहते हैं।

 1. Zeroth Low of Thermodynamics   ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम

 इस नियम के अनुसार यदि कोई दो वस्तुएँ किसी तीसरी वस्तु के साथ ऊष्मीय सन्तुलन में हों तो वे आपस में भी ऊष्मीय संतुलन में होंगी।
               A = C
 तथा,       B = C
 तब,        A = B

 2. First law of Thermodynamics  ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम 

 इसे ऊर्जा की अविनाशिता का नियम भी करते हैं। इसके अंतर्गत ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही समाप्त किया जा सकता है। इसे सिर्फ एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
  किसी वस्तु को दी गयी ऊष्मा दो तरह से उपयोग में आ सकती है। 
 1- बाह्य कार्य करने में जिसे वाह्य ऊर्जा कहेंगे तथा,
 2- वस्तु का तापक्रम बढ़ाने में जिसे आंतरिक ऊर्जा कहेंगे
 अतः 
          दी गयी ऊष्मा = वाह्य ऊर्जा + आंतरिक ऊर्जा
                     H = W + E

जूल का आंतरिक ऊर्जा नियम-

    आंतरिक ऊर्जा गैस के तापक्रम के अनुक्रमनुपाती होती है
 अतः 
       आंतरिक ऊ. में परिवर्तन = गैस का द्रव्यमान×स्थिरांक×ताप परिवर्तन,

   एकांक द्रव्यमान के गैस के लिए

   E= Cv × (T2- T1)


 3. Second Law of Thermodynamics ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम

 इस नियम के अनुसार ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु की ओर ऊष्मा का प्रवाह, किसी वाह्य कारक या ऊर्जा की सहायता के बिना असम्भव है।


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शेष जारी...











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